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मीडिया का गिरता स्तर, क्या लोकतंत्र....??
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मीडिया का गिरता स्तर, क्या लोकतंत्र....??


मीडिया का गिरता स्तर, क्या लोकतंत्र....??

डेस्क रिपोर्ट। कहने को तो वर्तमान समय में मीडिया को लोकतंत्र का चौथा स्तंभ माना जाता है। परन्तु जिस तरह से कुछ सालों में खास तौर पर 2014 के बाद जिस तरह से चौथे स्तंभ में दरारें पड़ी हे, उस को देखते हुए मीडिया पर कई तरह के आरोप लग रहे हे। पहले मीडिया का कार्य सत्ता से सवाल पूछना, जनता की आवाज़ बनना और निष्पक्ष रूप से समाचार प्रस्तुत करना था। लेकिन जब मीडिया अपनी स्वतंत्रता छोड़कर सत्ता के पक्ष में काम करने लगे, तो उसे आजकल ‘ग़ोदी मीडिया’ कहा जाने लगा है।

‘ग़ोदी मीडिया’ शब्द की लोकप्रियता 2019 के बाद तेजी से बढ़ी, जब विपक्षी नेताओं और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने कुछ प्रमुख समाचार चैनलों पर सरकार के पक्ष में प्रचार करने और असहमति की आवाजों को दबाने का आरोप लगाया। ऐसे मीडिया संस्थानों पर यह आरोप भी है कि वे गंभीर मुद्दों से ध्यान भटकाने के लिए भावनात्मक या सनसनीखेज़ ख़बरों को प्राथमिकता देते हैं, ये आजकल ज्यादातर चैनलों पर देखा जा सकता हे वो trp बढ़ाने के चक्कर में सभी सीमाएं लांग गए हे, ऐसा लगता हे, मिडिया स्टूडियो नहीं ये जंग का मैदान हो आने वाली पीढ़ी पर इसका क्या असर होगा इनके बच्चे भी जब ये सब देखेंगे तो उनका भविष्य क्या होगा जब वो अपने बाप मां को ये सब तूफाने बत्तेमीजी करते हुए देखेंगे।

ग़ोदी मीडिया पर यह भी आरोप खुलकर लगाए जा रहे हे कि यह लोकतंत्र की आत्मा—सवाल पूछने की परंपरा—को कमजोर कर रही है। जब मीडिया सत्ता की आलोचना करने के बजाय उसकी प्रशंसा में लीन हो जाती है, तो आम जनता के अधिकारों पर खतरा मंडराने लगता है।

हालांकि, यह भी जरूरी है कि सभी मीडिया संस्थानों को एक ही तराजू से न तोला जाए। आज भी चंद पत्रकार और मीडिया हाउस हैं जो निष्पक्ष पत्रकारिता कर रहे हैं और सत्ता से कठिन सवाल पूछ रहे हैं। परन्तु उनकी आवाज़ बंद करने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ी जा रही हे, उनके खिलाफ एक ग्रुप द्वारा हर तरह का दबाव बनाया जा रहा हे, अगर जानकारों की माने तो कई ईमानदार पत्रकारों को अपनी जान गवाना पड़ी हे।

ग़ोदी मीडिया की अवधारणा हमें यह सोचने पर मजबूर करती है कि क्या हमारा मीडिया सचमुच स्वतंत्र है? एक जागरूक नागरिक होने के नाते हमें यह ज़रूर देखना चाहिए कि हम किन स्रोतों से सूचना प्राप्त कर रहे हैं और क्या वे निष्पक्ष हैं या किसी एजेंडे को बढ़ावा दे रहे हैं।

पहले भी हिंदुस्तान में मीडिया या पत्रकारों की लेखनी उनका तरीका सिर्फ 20% लोग ही समझ पाते थे, परंतु आजकल तो लगता हे इसमें ओर कमी आईं हे, जिस तरह से गोदी मीडिया की  हिम्मत बढ़ रही हे उससे तो यही लगता हे कि जनता भी ईमानदार ओर निष्पक्ष लेखनी को या तो समझ नहीं पा रही हे, या बे रोजगारी की वजह से चंद रुपयों के खातिर अपना ईमान बेच चुकी हे।

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