
महाकाल लोक के घटिया निर्माण की खुली पोल
महाकाल लोक के घटिया निर्माण की खुली पोल
डेस्क रिपोर्ट। 30 किलोमीटर
प्रति घंटे की रफ्तार से चली हवा ने महाकाल लोक के घटिया निर्माण की पोल खोल कर रख दी। गुजरात की जिस कंपनी को मूर्तियां बनाने
के लिए सरकार ने महंगी कीमत चुकाई थी, उसने
गुणवत्ता को
ताक पर रख मूर्तियां बनाने
में जमकर खेल किए न मजबूती का ध्यान रखा, न हवा के प्रेशर की चिंता की। अब परिणाम सबके सामने है,जबकि पांच फीट से ऊंचाई पर मूर्तियां स्थापित
करने पर उसे हवा के प्रेशर के हिसाब से डिजाइन किया जाता है। फायबर की मूर्तियों के
भीतर भी मार्बल की टुकडि़यां भरकर
उसे मजबूत किया जाता है, ताकि वे हवा का प्रेशर झेल सके, लेकिन महाकाल लोक में सप्तऋषि की मूर्तियां खोखली
रखी। यह बात भी मूर्तियां टूटने
पर ही उजागर हुई।
खोखली मूर्तियां लगाना लापरवाही
जानकारी के अनुसार फायबर में इस्तेमाल की मेट की मोटाई भी कमजोर थी। यदि मजबूत होती तो मूर्तियां गिरने पर टूटती नहीं, बल्कि उसमें खरोचें आती या वे घीस जाती, लेकिन महाकाल लोक की कई मूर्तियां गिरते ही टूट गई, जो बता रही है कि घटियां निर्माण से मूर्तियां बनाई गई। मूर्तियों की मजबूती पर जानकार मूर्तिकार के अनुसार अमतौर पर तीन-चार फीट की जो फायबर की मूर्तियां बनाई जाती है, उसकी थिकनेस पतली रहती है, लेकिन महाकाल लोक मे 10 फीट से ज्यादा ऊंचाई की मूर्तियों में पतली परत के फायबर का इस्तेमाल हुआ। इसी वजह से मूर्तियां गिरने के कारण टूट गई। पांच फीट से ज्यादा की ऊंचाई पर स्थापित करने के दौरान हवा के प्रेशर के हिसाब से मूर्तियों को भीतर से मजबूत किया जाता है। मूर्ति के बेस से सिर तक स्टील की मजबूती दी जाती है और फिर भीतर मार्बल की टूकडियां से मूर्तियों को भरा जाता है, ताकि मजबूती बने रहे और वे हवा का प्रेशर झेल सके, लेकिन महाकाल लोक की मूर्तियां खोखली रखी गई, इसी वजह से वे हवा का प्रेशर नहीं झेल पाई। खोखली मूर्ति लगाना लापरवाही है।
खुले में फायबर की मूर्तियां लगाना गलत
मूर्तिकार के अनुसार फायबर की मूर्तियां खुले में सार्वजनिक स्थानों पर नहीं लगाई जाती। महाकाल लोक मे इसका ध्यान नहीं रखा गया। खुले में रखी गई फायबर की मूर्तियां आसमान की बिजली गिरने से जल जाती है। फायबर कुछ समय बाद कमजोर हो जाता है और दरारें भी आ जाती है। महाकाल लोक मे फायबर की मूर्तियां लगवाने वाले जवाबदारों की सोच पर तरस आता है। अभी तो महाकाल लोक का पहला साल है, उसमे ही ये हाल है। हवा की गति यदि 50 किलोमीटर प्रति घंटा होती फिर महाकाल लोक को हवा महल बनते देर नहीं लगती।
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